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कविता

हलचल

प्रतिभा चौहान


रिफ्रेश जिरॉक्स है तुम्हारी मुस्कुराहट
काँच के कोरों सी चमकीली
ओस की बूँदों सी शीतल
सूनी दास्तानों में जल रहे हैं
सूखे जंगल वादों के
कब तक नहीं आओगे
बता दो पगडंडी की हरियाली को
वो चाँद की करवटें
तेज हो चली हैं
घने जंगलों की सूखी कहानियाँ
नम हो चली हैं
शायद अपनी जिदों का कोट
उतार दिया होगा तुमने अब तक
ताजी बारहसिंही दुनिया के लिए
श्वेत फुहारों के चित्र
रंगीन हो रहे हैं जंगलों की काई से
यकीनन
ये तुम्हारे आने का खुशनुमा संकेत हैं।


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हिंदी समय में प्रतिभा चौहान की रचनाएँ